Loading Now

कार्तिक मास का महत्त्व

कार्तिक मास को “दान, स्नान, दीपदान और भक्ति” का महीना कहा गया है। यह महीना भगवान श्रीविष्णु और भगवान शिव दोनों के लिए अत्यंत प्रिय माना गया है। कार्तिक मास अश्विन पूर्णिमा से शुरू होकर मार्गशीर्ष अमावस्या तक चलता है। इसे “वैकुण्ठ मास” या “धर्म मास” भी कहा गया है क्योंकि इस समय जो भी पुण्यकर्म किया जाता है, उसका अनंतगुना फल मिलता है। यह माह सामान्यतः अक्टूबर–नवंबर के बीच आता है।

पुरानो के अनुसार इसी मास में भगवान विष्णु योगनिद्रा से जागते हैं जिसे देव उठनी एकादशी कहा जाता है एवं उत्साह से मनाया जाता है । एकादशी के चार दिन बाद तुलसी विवाह होता है — तुलसी जी का विवाह शालिग्राम (विष्णु रूप) से होता है। जो भक्त इस दिन तुलसी विवाह करते हैं, उन्हें अखंड सौभाग्य और मोक्ष प्राप्त होता है।

कार्तिक मास मे दीपदान, गंगा स्नान, गो-सेवा, दान और व्रत करने से समस्त पापों का नाश होता है। इस प्रकार यह माह सभी प्रकार से धार्मिक एवं भक्ति का माना गया है ।

कार्तिक स्नान और व्रत का विधान :

प्रातः काल ब्रह्ममुहूर्त (सूर्योदय से पहले) उठकर नित्यक्रिया के बाद शुद्ध जल में गंगाजल, तिल और तुलसी पत्र मिलाकर स्नान करें।

स्नान करते समय यह मंत्र बोलें — “ॐ केशवाय नमः, कार्तिक मासे स्नानं करिष्ये।” एवं स्नान के बाद भगवान विष्णु, शिव, तुलसी और सूर्य की पूजा करें।

दीपदान का महत्व :

कार्तिक मास को “दीपदान मास” कहा गया है। हर संध्या में घर, मंदिर, तुलसी और नदी के तट पर दीप जलाना चाहिए।
इससे दरिद्रता, रोग और भय का नाश होता है।
शास्त्रों में कहा गया है —
“दीपदानं न कार्तिके यदि कुर्यात्, तस्य जन्म व्यर्थं।”
अर्थात् — जो कार्तिक मास में दीपदान नहीं करता, उसका जन्म व्यर्थ माना गया है।

पूजन-व्रत की विधि:

स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें। तुलसी माता के समक्ष दीपक जलाएँ।

ॐ नमो नारायणाय” या “ॐ विष्णवे नमः” मंत्र का जप करें।

कथा श्रवण करें और दान दें। संध्या के समय पुनः दीपदान करें।

Share this content:

1 comment

comments user
Rohit

Nice sir

Post Comment